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सोमवार, 25 नवंबर 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ढ)धरती का भार | (१) आबादी’ का अंजाम

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

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रहने को मिलता नहीं, ढूँढे कहीं मुकाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम ||

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इससे महँगाई बढ़ी, गरम हुये ‘बाज़ार’ |
‘अर्थ-तन्त्र’ के सिन्धु में, आया मानो ज्वार ||
बढ़ी ‘भुखमरी’ बेतरह, पनपे अनेक रोग |
महँगी हुईं दवाइयाँ, व्याकुल कितने लोग !!
घर में पड़े मरीज़ हैं, नहीं जेब में दाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!१!!


‘नदियाँ संयम की’ रहीं, अपने तट को काट |
तितर-बितर सा हो रहा, है ‘जल’ बाराबाट ||
‘जन-संख्या की नदी’ में, आया विकट उफ़ान |
इस अनचाही बाढ़ से, विनशे ‘सुख-उद्यान’ ||
दुखद लबालव छलकता, यह ‘शरबत का जाम’ |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!२!!


आयु से पहले मिटे, खिलते हुये “प्रसून” |
पता नहीं क्या करेगा, ‘रति’ का बढ़ा जूनून ||
‘पंछी’ इतने बढ़ गये, छोटे सारे ‘नीड़’ |
हमें बहुत खलने लगी, है सड़कों की भीड़ ||
जहाँ तहाँ लगने लगे, हैं हर पथ जाम |
‘आबादी’ का देखिये, बहुत बुरा अंजाम !!३!!



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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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