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शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

मैं बंजारा भारत का |वर्तमान कड़ियाँ (सन् २००७ के बाद की यात्रायें)

आज पन्द्रहवें दिन घरेलू झंझावातों,इधर उधर की दौड़ और नेटवर्क

 की समस्याओं से झूझ कर पुन:आपके सामने अपनी एक यात्रा के

 दौरान केक अनहोनी असावधानी के चुभते काँटों के साथ |  
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===========================================    (२) सब कुछ खो कर घर को लौटे !
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नीचे के चित्र का सम्बन्ध मेरी आपबीती से कुछ भी नहीं अपितु गूगल-खोज से लिया यह एक सांकेतिक चित्र है ! 

अक्टूबर, वर्ष २०१३ की यह यात्रा किसी प्रकार भी शुभ या उत्साह वर्द्धक नहीं कही जा सकती है | १४ अक्टूबर की इस यात्रा में बहुत कुछ सीखने को मिला | मेरे ‘अति विशवास’ और ‘अनुभव’ को क़रारी चोट लगी | यानी यह मेरी ‘दिल तोड़ यात्रा’ थी | मेरी यह चावालिसवीं ‘भारत-दर्शन’ की यात्रा थी जिसमें मैने पहली वार ‘धर्म-स्थल’ को मुख्य लक्ष्य बनाया था |
       इस यात्रा का अग्रिम आरक्षण  मेरे पुत्र राहुल गौरव दत्त ने २० सितम्बर को ही घर में उपलब्ध इन्टरनेट सुविधा पर ऑनलाइन कर दिया था –मथुरा से उज्जैन १४ अक्टूबर २०१३ को तथा वापसी का २५ अक्टूबर २०१३ को उज्जैन से मथुरा | इस यात्रा में १६ अक्टूबर से २५ अक्टूबर तक उज्जैन, इंदौर क्षेत्र, भोपाल क्षेत्र, के दस-बारह स्थलों का भ्रमण करना था एवं २६ अक्टूबर से २८ या २९ अक्टूबर तक कन्नौज, मथुरा व धौल पुर आदि स्थानों का भ्रमण-दर्शन, लेखन करना था | अति उत्साह में था और सब कुछ ठीक ठाक था |
         अच्छा भला चला था अपने गृह-नगर पीलीभीत से कासगंज और वहाँ से आधा घंटा लेट गाड़ी सं.५५३४१ से मथुरा जा रहा था | अथाह भीड़ वाली इस रेलगाड़ी में भीड़ अकूत थी, भर्ती वाले नौजवानों की अनियंत्रित भीड़ | अफीमचियों, स्मैकियों चरसियों और शराबियों से सशंकित भीड़ | जेब कतरों, उठाईगीरों से शंकित ठसाठस भरी गाड़ी | इसम पैसेंजर गाड़ी में आखीर से इंजन के पहले दो डिब्बों तक पान रखने को जगह नहीं | केवल धक्कामुक्की में माहिर नौजवान बैठ सकते थे | मिया जैसे तैसे इंजन से पहले दूसरे डिब्बे में बैठ सका | बैठ क्या सका,खड़ा ही रहा सिकंदाराराव तक | दरवाज़े के पास वाली सीट के ऊपर मचान पर सामान रखा | ट्राली-बैग ब्रीफकेस के ऊपर मध्यमाकार कन्धे का थैला | बड़ी देर तक सिकंदाराराव तक तो सीट न मिलने के कारण सामान के पास बैठा रहा | सिकंदाराराव आने पर यात्री उतरे तो स्थान सामने की एक सीट मिली ‘अन्धे को दो आँखों’ की तरह | भीड़ के कारण इतना अवसर न मिला कि सामान सीट तक न ला सका या यों कहो कि ‘होतव्यता’ ने मति भ्रष्ट कर दी अन्यथा कन्धा-बैग तो ले कर बैठ ही सकते थे |
       ओह ! सामने के सज्जन नुमा नौजवान ने बार हठ कर के सामान लाने को सिर्फ इस लिये मना कर दिया कि सीट घिर जायेगी | उसने गारंटी दी कि सामान वह देखता रहेगा | सिकन्दराराव से गाड़ी चलते ही, उस नौजवान के मुहँ घूमते ही मैंने सामान पर एक ‘लुटरा हाथ’ आते देखा | लों, जब तक मैं चिल्ला कर आगे बढ़ता, गाड़ी चल पड़ी और बैग लेकर वह बेदर्द उठाईगीर यह गया –वह गया ! मेरे लिये आजीवन पीड़ा दे गया | घरवालों के बार बार मना करने पर मेरी
मारी गयी मति ने उसी बैग में मेरा वर्ष १९६३ का हाईस्कूल का प्रमाणपत्र रख दिया था और जीवन भर प्राप्त साहित्यिक सम्मान-प्रमाणपत्र और बड़े छोटे कवि-सम्मेलनों में सहभागिता के प्रमाणपत्रों की फ़ाइल भी रख दी थी, जिन के फोटोस्टेट भी मेरे पास नहीं हैं, वे भी उसी बैग में थे | इन में से कुछ तो बहुत ही महत्वपूर्ण थे | जैसे वर्ष १९८५ में खटीमा के अपने मित्र डॉ.रूप चन्द्र शास्त्री ”मयंक” के साथ शेक्सपियर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के तत्वाधान में प्राप्त प्रमाणपत्र | उस समय डॉ.शास्त्री मरी कर्म क्षेत्र बनवसा में ही थे | दूसरा प्रमाण पत्र था वर्ष २००० में जैमिनी अकादमी पानीपत से प्राप्त ‘आचार्य’ की मानद  उपाधि | तीसरा प्रमाण पत्र था नजीबाबाद की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा  कैम्पा कोला फैक्ट्री में सम्पन्न कार्यक्रम में प्राप्त शोध-पत्र वाचन का और मुरादाबाद में डॉ.महेश दिवाकर द्वारा सम्पन्न सम्मलेन का, दिल्ली आदि स्थानों में प्राप्त प्रमाणपत्र थे | नेपाल महाकाली अंचल के कंचनपुर जिल्ला के मुख्यालय महेन्द्रनगर में वहाँ के राष्ट्रीय स्तर के एक साहित्य-सम्मलेन में सहभागिता एवं कविता-वाचन का महत्वपूर्ण प्रमाणपत्र विशेष था | इस कार्यक्रम में खटीमा के मित्र कवि राजकिशोर “राज” एवं डॉ चन्द्र शेखर जोशी भी साथ थे | संस्कार भारती, साहित्य शारदा मंच आदि से प्राप्त प्रमाण पत्रों सहित कई प्रमाणपत्र थे जो अब मेरे लिये निर्थक प्राय हो चुके हैं | वैसे इन सभी प्रमाणपत्रों के सूत्र तलाशने का प्रयास करने का प्रयास करूँगा |
संस्कार भारती, साहित्य शारदा मंच आदि से प्राप्त प्रमाण पत्रों सहित कई प्रमाणपत्र थे जो अब मेरे लिये निर्थक प्राय हो चुके हैं |
     अन्त;वस्त्रों, सेल चार्जर, मोवाइल चार्जर ताला चाबी की तो बात ही छोडो ! पुन; मिल जायेंगे पर प्रमाण पत्र जो गये तो गये | हाथ ही मलना है |                     
 (क्रमश:)

          
               

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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