भीषण जन-समस्याएं जैसे बेरोज़गारी और भुखमरी तथा अनिवार्य आवश्यकतायें एवं नशाखोरी की लत -उस की पूर्ति के लिये अनर्गल प्रयास आदि खूनी आतंक वाद का कारण हैं |
सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
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‘खूनी होली’ खेलते,
हैं ‘अधर्म के लाल’ |
हुई ‘धर्म’ के ‘खून’ से, सारी
‘धरती’ लाल ||
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‘राजनीति’ के ‘कोढ़’
में, ‘भ्रष्टाचार की खाज’ |
‘मज़मा’ रोज़ बटोरते, ‘झूठे भाषण बाज़’ ||
खोल ‘कपट की
पोटली’, ‘वादे’ रहे हैं
बाँट |
किन्तु अभी तक ‘उलझनों’, की न खुल सकी गाँठ ||
नेता बन ‘बहुरूपिये’, बजा
रहे हैं गाल |
हुई ‘धर्म’ के ‘खून’ से, सारी ‘धरती’
लाल
||१||
युवक हैं
‘ठाली’ घूमते, रोज़गार
से हीन |
इन को
कर के संगठित,
‘धूर्त नीति-प्रवीण’ ||
‘उपद्रवी’
कुछ बना
कर, के इन को
‘हथियार’ |
भडकाते हैं
इन्हें कह, कर
बातें दो चार ||
‘तोड़ - फोड़’, ‘खूंरेजियों,
के हो रहे
‘बबाल’ |
हुई ‘धर्म’ के ‘खून’ से, सारी ‘धरती’
लाल
||२||
अपना
उल्लू साधने, में
माहिर कुछ लोग |
भिड़ा के ‘जनता’
को स्वयं, खाते ‘मोहन भोग’ ||
‘हिंसा’
को भड़का रहे, ‘समानता’
के नाम |
‘साम्यवाद’
को कर रहे, कुछ ‘पापी बदनाम’ ||
‘भोले भावुक लोग’ कुछ,
फँसते इन के ‘जाल’ |
हुई ‘धर्म’ के ‘खून’ से, सारी ‘धरती’
लाल
||३||
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