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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

प्रश्न जाल ( ??कहाँ से लाओगे ??)

मेरे (एक समस्या मूलक काव्य)

'प्रश्न-जाल'में एक

 नयी रचना का समावेश |

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‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??
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मन में जला के ‘तृष्णा-अगिनी’ |
‘छल औ कपट के ताने भरनी’ ||
से बुन कर के ‘प्रीति-चदरिया’-
ओढ़ के चली ‘वासना-रमणी’ ||
‘निर्विकार रति’ नहीं रह गयी-
‘कामदेव अविकार’ कहाँ से लाओगे ?
‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??१??


‘त्याग और बलिदान’ की बातें |
‘प्रेम’ में ‘जीवन-दान’ की बातें ||
लगतीं सब को ‘मिथक कथायें’
पीड़ा सह ‘मन-दान’ की बातें’ ||
‘शीरीं औ फ़रहाद’, ‘हीर’ से-
‘राँझे से किरदार’, कहाँ से लाओगे ??            
‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??२??

 

दिल ‘पठार’ हैं, पत्थर से हैं |
‘नीर’ रहित, ‘सूखे सर’ से हैं ||
इन में ‘स्नेह’ के बीज न बोना-
‘मन’ ऊसर से, बंजर से हैं ||
‘पतझर वाली इन कुन्जों’ में-
‘बासन्ती व्यवहार’ कहाँ से लाओगे ??
‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??३??


‘ओछी सोच’ औ ‘ओछी करनी’ |
जैसी ‘करनी’, वैसी ‘भरनी’ ||
‘श्रद्धा’, ‘आस्था’ ‘मैल’ में लिपटीं-
कीचड़ सी ‘निष्ठा-वैतरणी’ ||
‘पाप’ पखारे, ‘चित्त’ निखारे-
‘पावन गंगा धार’ कहाँ से लाओगे ?
‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??४??


‘चित्त’ में मैली पली ‘कामना’ |
लोभ-स्वार्थ मय हर ‘उपासना’ ||
‘ज्ञान के अंजन’ में है ‘मिलावट’
व्यर्थ है इन से ‘नयन’ आंजना ||
‘धृतराष्ट्रों’ के संचालन में-
‘आँखों’ में ‘उजियार’ कहाँ से लाओगे ??
‘सीधे सच्चे यार’ कहाँ से लाओगे ?
‘भोला भाला प्यार’ कहाँ से लाओगे ??५??



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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मौसम (ब) !धूप का स्वाद! (१) !सूर्य ने हास बिखेरा !

प्रिय ब्लोगर मित्रों, बेटी के वैवाहिक क्रिया कलाप और लंबी शीत-जन्य बीमारी से निवृत्त हो कर आप की सेवा में पुन: क्षमा याचना सहित उपस्थित हूँ |इस रचना में दुखोँ की ठण्ड और सुख की गर्म धुप के संघर्ष के बाद सम शान्त बासंती धुप का स्वागत किया है |(सारे चित्र गूगल खोज से उद्धृत)




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बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |

बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||


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भीषण  सर्दी   फैलाने    में    जब   मानों  ‘हेमन्त’ थका |

‘अपने अनुज’ को देखा असफल, ‘शिशिर’ सहन कर नहीं सका ||

‘शीतलता  के  दैत्य’  बटोरे,  करने  उस  की  मदद   चला-

जन  को  दुःख  देने, सबको  जन उस  ने  घेरा धरती पर |

बहुत  दिनों  के  बाद  ‘सूर्य’  ने  हास  बिखेरा  धरती पर |

बहुत दिनों  के  बाद  ‘धूप’ ने  किया  बसेरा  धरती  पर ||१||'



कई रोज़ तक  ‘शिशिर’ ने  ‘कोहरे  का आतंक’  मचाया था |

‘मायावी  छलिया’  ने  ‘छल  का  ठण्डा  खेल’  रचाया  था||

‘बर्फीली  बरछी ‘ से  घायल,  ‘ताप’ को कर,  सन्ताप  दिया –

‘अमन- चैन’  को  लूट  के  पामर  बना  ‘लुटेरा‘ धरती पर ||

बहुत  दिनों  के  बाद  ‘सूर्य’  ने  हास  बिखेरा  धरती पर |

बहुत दिनों  के  बाद  ‘धूप’ ने  किया  बसेरा  धरती  पर ||२||



‘भोजन  की  तलाश’  में  उड़ते  पन्छी   मर  कर गिरे कई |

गलियों- खेतों में  बेबस  पशु  ठिठुर  ठिठुर  कर  मरे  कई ||

निर्धन  कुछ  लाचार  मर  गये, ‘भूख के काँटे’  में  फँस  कर-

‘मौत  की  ब्न्छी’  ले  कर  आया,  ‘काल  मछेरा’  धरती पर-

बहुत  दिनों  के  बाद  ‘सूर्य’  ने  हास  बिखेरा  धरती पर |

बहुत दिनों  के  बाद  ‘धूप’ ने  किया  बसेरा  धरती  पर ||३||

‘ जाड़ा’  बन  ‘शैतान’  सभी  को  कर  के  दुखी डराता था |

दिन  में  भी  ‘रातों  का  काला  सा  साया’  मँडराता  था ||

‘बसन्त  की  पद-चाप’  सुनी  तो,  बंधा  ‘रोशनी’ को  ढारस-

निर्भय  हुआ  प्रसन्न  हो गया,  हँसा  ‘सवेरा’  धरती पर |

बहुत  दिनों  के  बाद  ‘सूर्य’  ने  हास  बिखेरा  धरती पर |

बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती  पर ||४||



‘दृश्य  अनोखा  और  सुहाना’  धरा  पे  देखा  है  सब  ने |

फैला  दिया  है  उजला उजला  रूप  इस  तरह ‘मौसम’ ने ||

किसी चित्र में रँग भरने से पूर्व, धरातल रँगने  को-

रंग  सुनहरा  ले  कर  आया,  कोई   ‘चितेरा’  धरती  पर ||

बहुत  दिनों  के  बाद  ‘सूर्य’  ने  हास  बिखेरा  धरती पर |

बहुत दिनों  के  बाद  ‘धूप’ ने  किया  बसेरा  धरती  पर ||५||


बीता ‘समय प्रतीक्षा का’ अब जल्दी ‘बसन्त’ आएगा |

‘सौगातों  की  झोली’  में   भर,  ‘कलियाँ’-“प्रसून” लायेगा ||

बाग-बगीचों,  बनों  में  पादप-तरु  औ  बेलि  खिलेंगे  अब-

‘घोर निराशा बीती, ‘आस’ ने, डेरा डाला धरती पर ||

बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |

बहुत दिनों  के  बाद  ‘धूप’ ने  किया  बसेरा  धरती  पर ||६||


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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