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बुधवार, 26 सितंबर 2012

ज़लजला(क)वन्दना (२) मातृ-वन्दना(सरस्वती-वन्दना) - माँ तू मुझे भी तार दे !




  
  (सरस्वती-वन्दना)

   

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    माँ तू मुझे भी तार दे !

  
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जग तारिणी ! भव-तारिणी !!
माँ,तू मुझे भी तार दे !!

   

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सागर गहन,लहरें विकट | भय मृत्यु का कितना विकट !!
जो हों डूबते | तट ढूँढते ||
उनकू तू मातु उतार दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!१!!
             
              

           

अज्ञान का यहाँ क्लेश है | कितना निठुर परिवेश है ||
जग क्लिष्ट है | तम श्लिष्ट है ||
इसमें तूज्योती उतार दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!२!!

       

धूमिल यहाँ हर भाव है | सब से सभी को दुराव है ||
मेरा मन मलिन | पंकिल पुलिन ||      ( पुलिन =तालाब का किनारा )
तू हर कलुष को निखार दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!३!!
    

सोया हुआ विशवास है | पापों भरी हर साँस है ||
हर दोष हर ! परितोष भर !!
बिगड़ी मेरी सुधार दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!४!!

 

दूषण सने ‘भव-गीत’ हैं | छलना भरे ‘संगीत’ हैं ||
सत्-सुर सजे | वीणा बजे ||
ऐसी ‘मधुर ‘झंकार’ दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!५!!



‘अघ’,’औघ’ से जग सुप्त है | ‘जागृति’ यहाँ से लुप्त है ||
‘परितोष’ कर ! ‘उद्बोध’ भर !!
कर दूर तू ‘कुविकार’ दे !!
जग तारिणी ! भव-तारिणी !! माँ,तू मुझे भी तार दे !!६!!

 

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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